Sunday, November 13, 2022

सरस्वती वंदना

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‌मातु शारदे अभिनव वर दो |

‌पुलकित सभी चराचर कर दो |

‌घर घर मे विद्या प्रसार हो 

‌वेद पाठ फिर द्वार द्वार हो 

‌भाव भूमि हो सदा सुसंस्कृत 

‌सर्व अविद्या तार तार हो 

‌हर मानव मानव कहलाए 

‌जाति पंथ च्युत निर्मल उर दो |  मातु शारदे... 

‌प्रेम भाव से भरे हृदय हों

‌पर पीड़ा मे सभी सदय हों

‌अतिचारी व्यभिचारी के प्रति

‌रहें एकजुट सभी निदय हों

‌सत्पथ से हों कभी न विचलित 

‌ऐसी सबको बुद्धि प्रखर दो | मातु शारदे......... 

‌ललित कलाएँ तेरी संतति

‌तेरी पूजा मेरी संपति 

‌मनोवृत्ति की तुम संस्थापक 

‌थमा तूलिका भरती हो गति

‌जग गुरु पदासीन हो भारत 

‌ऐसी त्वरा पगों मे भर दो | मातु शारदे...........

‌भावों पर हो तेरा आसन

‌शब्द शब्द मे तव अनुशासन

‌यति गति कर लय ताल अलंकृत

‌छन्द छन्द करता हो लासन 

‌नीर क्षीर से बनें विवेकी

‌मन के भाव समुन्नत कर दो | मातु शारदे......... 

‌              चातक


 घरौंदा


घरौंदा गाँव का अपने बसाने लौट आया हूँ

खुशी बसती जहाँ मै उस ठिकाने लौट आया हूँ.

   ये नगर जो ईंट पत्थर के घने कानन हुये हैं

   हीन स्मिति से सभी के अनमने आनन हुये हैं

   मिट पाती है कभी उनसे अभावों की वो छाया

   जो सरल जीवन को करने के बने साधन हुये हैं.

आती नींद रातों को दिन दे चैन पाते हैं

यहाँ पर शान्ति के कुछ पल बिताने लौट आया हूँ. घरौंदा गाँव का......

   जहाँ प्रासाद उन्नत श्रेणियाँ अठखेलियाँ करतीं

   मगर वे भाव घर का दे अपने पन से हृद भरतीं

   हृदय संवेदना से हीन खाली सिन्धु से लगते

   निभें रिश्ते ज्यों रेगिस्तान में नावें दिखें तिरती.

सुखद यह नीम की छाया लगे माँ की ही ममता सी

लिये मन लालसा वह प्यार पाने लौट आया हूँ.

घरौंदा गाँव का.......

   कभी भूला नहीं देता रहा जो छांव वह पीपल

   दुपहरी जेठ की तपती में नीचे वायु जो शीतल

   मेरी माँ ने जहाँ गाड़ा था मेरे जन्म का नाड़ा

   हो गया हर तीर्थ से ऊंचा मेरा ये जन्म स्थल.

पुरातन पेंड़ बागों के दिखें सब अस्थि पंजर से

निशानी पूर्वजों की वो बचाने लौट आया हूँ.

घरौंदा गाँव का.....

   नहीं अब गाँव के भी दृश्य वैसे रह गये साथी

   सरोवर कूप प्यासे चीख पीड़ा कह गये साथी

   बंधे हैं प्रेम सरि पर बांध चेहरे रेत के टीले

   कहानी कह रहे अपनी व्यथा चुप सह गये साथी

भगीरथ हो नहीं सकता तो 'मांझी हूँ वही दशरथ'

सरित मरुथल में फिर संभव बनाने लौट आया हूँ.

घरौंदा गाँव का अपने......

      त्रिभुवन शंकर मिश्र  "चातक "

Thursday, August 20, 2015